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May 7, 2020

अर्थव्यवस्था के लिए अंगूरी का योगदान ' कलंक या कफ़न '

wine and coronavirus
wine shop 
कोरोना महामारी को रोकने के लिए देश व्यापी lockdown को अगर Lifedown भी कहा जाये तो कम नहीं है | क्योकिं इस Lifedown के दौरन घरों में बंद आदमी घुट घुट कर जी रहा है | कोरोना के कहर से कम वल्कि Lockdown की बढती बंदिशों से जिंदगी थम सी गई है | lifedown का असर साफ़ उन जगह देखने को मिल जाता है, जो शहर कभी गुलजार हुआ करते थे | आज वहां केवल गुल है जार का पता नहीं | 

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                  Lockdown की बढती बंदिशें और मयखाने खुल जाना | अंगूरी के बेटी के लिए लोगों के द्वारा लाइन में लगकर इंतजार करना | महामारी के प्रकोप की चैन तोड़ने वाले Lockdown का पालन न कर खींचतान मचाना, कहीं न कई संक्रमण चैन  की बंदिशों से जुड़ें  तारों को तोड़ देता है | जो लोग लाइन में लगे हैं इसमें एक कई ऐसे परिवार हैं | जो बुझे चूल्हे देखकर अपने पेट की भूख प्यास भुजा देते हैं | और दारू के शौक़ीन लाइन में लगाकर शराब की बोतल का इंतजार करते हैं | मुमकिन है मुशीं प्रेमचंद की कहानी ' कफ़न ' को इस हकीकत से जोड़ा जाये तो कुछ कम नहीं होगा | में ये तो नहीं जनता की मुंशी प्रेमचंद की कहानी किसी सत्य घटना पर आधारित है या नहीं | परन्तु ये समझ में जरुर आ गया की उनकी कहानी को अगर आज के दौर से देखा जाये तो सटीक है | 
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           मुमकिन है की सरकार के द्वारा खोले गए शराब के ठेके अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सहायक सिद्ध हों लेकिन कई परिवारों के लिए एक ऐसा दौर शुरू होने वाला है जिसकी कोई कल्पना नहीं की जा सकती है | शराब का यह नया दौर कई परिवारों को उन हालतों में धकेल देगा जिसके बारे में सोचा भी न होगा | पिछले 40 दिन हाथ पर हाथ धरे बैठे कई परिवार, पाई पाई के लिए मोहताज हैं | सरकार के द्वारा राजस्व के लालच में खोला गया शराब का कारोबार, उन परिवारों के लिए कोरोना संक्रमण से बर्वादी का संक्रमण ज्यादा रफ़्तार से दौड़ेगा | यहाँ अगर यहभ मन लें की इन  अंगूर के बेटी के शकिनों से घरेलु हिंसा जैसे मामलों में बढोत्तरी होगी, तो कुछ कम नहीं होगा | कोरोना कितनी तबाई करेगा इसका अनुमान अभी नहीं लगाया जा सकता लेकिन अंगूर की बेटी के शोकीनों से होने वाले परिवार की वर्वादी का अनुमान जरुर लगाया जा सकता है | 
     न तो दारू से कोरोना का संक्रमण ख़त्म हो सकता है और नहीं कोरोना दारू से मर सकता है | तो केवल सरकारों के द्वारा राजस्व के लिए खोले गए शराब के ठेके के अलाबा कोई अन्य विकल्प नहीं था | 

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