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Jul 29, 2016

sankat mukti mantra

*रामचरितमानस* की चौपाइयों में ऐसी क्षमता है कि इन चौपाइयों के जप
से ही मनुष्य बड़े-से-बड़े संकट में भी मुक्त हो जाता है।
इन मंत्रो का जीवन में प्रयोग अवश्य करे _*प्रभु श्रीराम*_ आप के जीवन को
सुखमय बना देगे।

_*1. रक्षा के लिए*_
मामभिरक्षक रघुकुल नायक |
घृत वर चाप रुचिर कर सायक ||

_*2. विपत्ति दूर करने के लिए*_
राजिव नयन धरे धनु सायक |
भक्त विपत्ति भंजन सुखदायक ||

_*3. *सहायता के लिए*_
मोरे हित हरि सम नहि कोऊ |
एहि अवसर सहाय सोई होऊ ||

_*4*. *सब काम बनाने के लिए*_
वंदौ बाल रुप सोई रामू |
सब सिधि सुलभ जपत जोहि नामू ||

_*5*. *वश मे करने के लिए*_
सुमिर पवन सुत पावन नामू |
अपने वश कर राखे राम ||

_*6*. *संकट से बचने के लिए*_
दीन दयालु विरद संभारी |
हरहु नाथ मम संकट भारी ||

_*7*. *विघ्न विनाश के लिए*_
सकल विघ्न व्यापहि नहि तेही |
राम सुकृपा बिलोकहि जेहि ||

_*8*. *रोग विनाश के लिए*_
राम कृपा नाशहि सव रोगा |
जो यहि भाँति बनहि संयोगा ||

_*9. ज्वार ताप दूर करने के लिए*_
दैहिक दैविक भोतिक तापा |
राम राज्य नहि काहुहि व्यापा ||

_*10. दुःख नाश के लिए*_
राम भक्ति मणि उस बस जाके |
दुःख लवलेस न सपनेहु ताके ||

_*11. खोई चीज पाने के लिए*_
गई बहोरि गरीब नेवाजू |
सरल सबल साहिब रघुराजू ||

_*12. अनुराग बढाने के लिए*_
सीता राम चरण रत मोरे |
अनुदिन बढे अनुग्रह तोरे ||

_*13. घर मे सुख लाने के लिए*_
जै सकाम नर सुनहि जे गावहि |
सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ||

_*14. सुधार करने के लिए*_
मोहि सुधारहि सोई सब भाँती |
जासु कृपा नहि कृपा अघाती ||

_*15. विद्या पाने के लिए*_
गुरू गृह पढन गए रघुराई |
अल्प काल विधा सब आई ||

_*16. सरस्वती निवास के लिए*_
जेहि पर कृपा करहि जन जानी |
कवि उर अजिर नचावहि बानी ||

_*17. निर्मल बुद्धि के लिए*_
ताके युग पदं कमल मनाऊँ |
जासु कृपा निर्मल मति पाऊँ ||

_*18. मोह नाश के लिए*_
होय विवेक मोह भ्रम भागा |
तब रघुनाथ चरण अनुरागा ||

_*19. प्रेम बढाने के लिए*_
सब नर करहिं परस्पर प्रीती |
चलत स्वधर्म कीरत श्रुति रीती ||

_*20. प्रीति बढाने के लिए*_
बैर न कर काह सन कोई |
जासन बैर प्रीति कर सोई ||

_*21. सुख प्रप्ति के लिए*_
अनुजन संयुत भोजन करही |
देखि सकल जननी सुख भरहीं ||

_*22. भाई का प्रेम पाने के लिए*_
सेवाहि सानुकूल सब भाई |
राम चरण रति अति अधिकाई ||

_*23. बैर दूर करने के लिए*_
बैर न कर काहू सन कोई |
राम प्रताप विषमता खोई ||

_*24. मेल कराने के लिए*_
गरल सुधा रिपु करही मिलाई |
गोपद सिंधु अनल सितलाई ||

_*25. शत्रु नाश के लिए*_
जाके सुमिरन ते रिपु नासा |
नाम शत्रुघ्न वेद प्रकाशा ||

_*26. रोजगार पाने के लिए*_
विश्व भरण पोषण करि जोई |
ताकर नाम भरत अस होई ||

_*27. इच्छा पूरी करने के लिए*_
राम सदा सेवक रूचि राखी |
वेद पुराण साधु सुर साखी ||

_*28. पाप विनाश के लिए*_
पापी जाकर नाम सुमिरहीं |
अति अपार भव भवसागर तरहीं ||

_*29. अल्प मृत्यु न होने के लिए*_
अल्प मृत्यु नहि कबजिहूँ पीरा |
सब सुन्दर सब निरूज शरीरा ||

_*30. दरिद्रता दूर के लिए*_
नहि दरिद्र कोऊ दुःखी न दीना |
नहि कोऊ अबुध न लक्षण हीना |

_*31. प्रभु दर्शन पाने के लिए*_
अतिशय प्रीति देख रघुवीरा |
प्रकटे ह्रदय हरण भव पीरा ||

_*32. शोक दूर करने के लिए*_
नयन बन्त रघुपतहिं बिलोकी |
आए जन्म फल होहिं विशोकी ||

_*33. क्षमा माँगने के लिए*_
अनुचित बहुत कहहूँ अज्ञाता |
क्षमहुँ क्षमा मन्दिर दोऊ भ्राता ||
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